डिजिटल दुनिया
में क्षेत्रीय भाषाओं का महत्व
-
दिलीप कुमार सिंह
भारत कोकिंग कोल लिमिटेड,
धनबाद
एक
सर्वे के मुताबिक इंटरनेट पर वर्तमान में लगभग 20 बिलियन सक्रिय वेबसाईट हैं। इन
वेबसाईटों में उपलब्ध कुल सामग्री का 52.7 प्रतिशत भाग अंग्रेजी में, 6.3 % जर्मन में, 6.2% रशियन में, 5.1% प्रतिशत स्पेनिश में, 4.1% फ्रेंच में, 1.8% मंदारिन में और 0.1% भारतीय भाषाओं में है। इस सूची में हिंदी का स्थान
41वां है और भारत की अन्य भाषाओं का स्थान तो और भी नीचे है। भाषायी आधार पर
इंटरनेट प्रयोक्ताओं की संख्या देखी जाये तो अंग्रेजी 25.3% के साथ प्रथम स्थान पर
और मंदारिन 19.4% के दूसरे स्थान पर है, जबकि टॉप टेन सूची
में भारत की एक भी भाषा नही आती है, हिंदी भी नही।...
भारत में अंग्रेजी का यह उच्चतम स्थान भविष्य में उच्चतम नही रह जायेगा। भारत में इंटरनेट प्रयोक्ताओं की बढ़ती संख्या, बढ़ती डिजिटल साक्षरता, सस्ते होते डाटा प्लान, स्मार्टफोन की बढ़ती उपलब्धता से भारत की क्षेत्रीय भाषायें इंटरनेट पर अपनी मौजूदगी को 18% की दर से बढ़ा रही हैं, जबकि अंग्रेजी भाषा की वृद्धि दर 3% है। इसी गति से यदि भारतीय भाषायें इंटरनेट पर बढ़ती रहीं तो वर्ष 2021 में भारतीय भाषाओं में इंटरनेट प्रयोक्ताओं की संख्या 536 मिलियन हो जायेगी जो कि भारत में इंटरनेट पर अंग्रेजी प्रयोक्ताओं की तुलना में बहुत अधिक होगी।
भारत में अंग्रेजी का यह उच्चतम स्थान भविष्य में उच्चतम नही रह जायेगा। भारत में इंटरनेट प्रयोक्ताओं की बढ़ती संख्या, बढ़ती डिजिटल साक्षरता, सस्ते होते डाटा प्लान, स्मार्टफोन की बढ़ती उपलब्धता से भारत की क्षेत्रीय भाषायें इंटरनेट पर अपनी मौजूदगी को 18% की दर से बढ़ा रही हैं, जबकि अंग्रेजी भाषा की वृद्धि दर 3% है। इसी गति से यदि भारतीय भाषायें इंटरनेट पर बढ़ती रहीं तो वर्ष 2021 में भारतीय भाषाओं में इंटरनेट प्रयोक्ताओं की संख्या 536 मिलियन हो जायेगी जो कि भारत में इंटरनेट पर अंग्रेजी प्रयोक्ताओं की तुलना में बहुत अधिक होगी।
भारत की भाषाओं को डिजिटल माध्यमों
में समृद्ध करने के लिए यह एक बहुत बड़ा सुअवसर हमारे पास आ रहा है। समस्त
देशवासियों को उनकी भाषा में सभी संसाधन उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से
निपटने के लिए अधिक से अधिक सामग्रियों को भारतीय भाषाओं में तैयार करना होगा। जब
तक देशवासियों को उनकी भाषा में सामग्री उपलब्ध नही करायी जायेगी, तब तक न तो इंटरनेट व कंप्यूटर की असीम क्षमताओं का समुचित प्रयोग किया जा
सकेगा और न ही पूरी तरह से डिजिटल क्रांति लायी जा सकेगी। केपीएमजी द्वारा जारी की
गयी एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2021 तक भारत में हिंदी के 201 मिलियन, बंगाली के 42 मिलियन, तेलुगु के 31 मिलियन, तमिल के 32 मिलियन, मराठी के 51 मिलियन, गुजराती के 26 मिलियन, कन्नड़ के 25 मिलियन, मलयालम के 17 मिलियन और अन्य भाषाओं के 110 मिलियन इंटरनेट प्रयोगकर्ता
होंगे। इन सभी भाषा भाषियों को उनकी भाषा में ही समाचार, विज्ञापन,
संगीत, वीडियो, डिजिटल
राईट अप, भुगतान पोर्टल, ऑनलाईन
गवर्नमेंट सर्वीसेज, डिजिटल क्लासीफाईड उपलब्ध करवाना होगा,
तभी देश में डिजिटल क्रांति का स्वप्न साकार होगा।
भारत में 30 वर्ष से कम
आयु वर्ग के लोगों की संख्या लगभग 33% है। इस आयु वर्ग में से प्रत्येक तीन में एक
भारतीय भाषा इंटरनेट प्रयोक्ता है। इस बड़ी संख्या को अपनी भाषाओं में सामग्री
निर्माण करने वाले मानव संसाधन में यदि बदल पाना संभव हो पायेगा, तो ये समस्या बड़ी आसानी से दूर हो जायेगी। भारतीय भाषाओं में सामग्री की
बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए यह एक बड़ा अवसर साबित होगा। भारतीय भाषाओं में
कीबोर्ड अभी भी एक समस्या बना हुआ है। 70% भारतीय इंटरनेट प्रयोक्ता इसे एक बाधा
मानते हैं। 60 प्रतिशत भारतीय भाषा इंटरनेट प्रयोक्ता ऑनलाईन माध्यमों को अपनाने
में इंटरनेट पर सीमित भाषा समर्थन को बाधा मानते हैं। भारत में 78% लोग मोबाइल फोन
के माध्यम से इंटरनेट का प्रयोग करते हैं और 99% भारतीय भाषा इंटरनेट प्रयोक्ता
अपने मोबाइल फोन के माध्यम से इंटरनेट का प्रयोग करते हैं। भविष्य में इंटरनेट पर उपलब्ध करायी जाने
वाली सामग्री को डेस्कटॉप के साथ-साथ मोबाइल अनुकूल भी बनाना अनिवार्य शर्त होगी,
तभी यह सही तरीके से सभी प्रयोक्ताओं द्वारा अपनायी जा सकेगी।
वर्तमान
में भारत में अंग्रेजी डिजिटल माध्यमों में सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा बनी हुई है।
यद्यपि भारतीय भाषा में इंटरनेट प्रयोक्ताओं की बढ़ती संख्या विशेषकर टायर-2, टायर-3 और ग्रामीण इलाकों में बढ़ने से स्मार्टफोन व इंटरनेट घनत्व बढ़ने
से यह आवश्यक होता जा रहा है कि ऐसे डिजिटल सिस्टम तैयार किए जाएं जो कि भारतीय
भाषा भाषियों के लिए और अधिक प्रासंगिक और उपयोगी हों। वर्ष 2021 तक भारत में
इंटरनेट घनत्व में 52% की वृद्धि होने का अनुमान है। इंटरनेट सुविधा से युक्त
स्मार्टफोन की संख्या वर्ष 2016 में 300 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2020 तक 700 मिलियन
हो जाने का अनुमान है। वर्ष 2016 में 1 जीबी इंटरनेट की दर ₹ 200 से घटकर वर्तमान
में लगभग ₹ 3 हो गयी है।
पिछले 5 वर्षों से अधिक समय से भारतीय
भाषाओं के बीच समाचार और मनोरंजन से जुड़ी सामग्री सर्वाधिक पसंद की जा रही है।
इसके साथ ही सोशल मीडिया व चैट एप्लीकेशनों में स्थानीय भाषाओं के कीबोर्ड उपलब्ध
होने और स्मार्टफोन में ये सुविधायें होने की वजह से इनका बहुत प्रयोग बढ़ा है।
महानगरों में रहने वाले लोग मुख्यत: मनोरंजन
सामग्री अपनी भाषाओं में खोजते हैं लेकिन डिजिटल माध्यमों की बढ़ती पहुंच से देश के
पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा है। इन क्षेत्रों
में विकास के सभी संसाधन मुहैया कराने के लिए इंटरनेट पर जब तक अपनी भाषा को महत्व
नही मिलेगा, तब तक इसका लाभ पूरी तरह से उठाया जाना संभव नही हो
सकेगा।
भारतीय भाषाओं में इंटरनेट स्वीकारने
वालों की बढ़ती संख्या के साथ ही संपूर्ण भारतीय भाषा परिदृश्य में अपनी भाषाओं में
सामग्री निर्माण, मशीन पर इनका समर्थन और विभिन्न
साफ्टवेयरों व प्रौद्योगिकियों पर इनका समर्थन प्रदान करने हेतु नए विमर्श और नए
प्रयास शुरु हो गए हैं।
विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर बड़े
जनसमुदाय तक क्षेत्रीय भाषा में सामग्री उपलब्ध कराने के लिए रणनीतियां/योजनाएं
बनायी जा रही हैं। उदाहरण के लिए, देश में डिजिटल सामग्री उपलब्ध
कराने वाली एक अग्रणी संस्था ने 50,000 घंटे की सामग्री आठ
क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध करवा रही है और विभिन्न भाषाओं में अपनी वेबसीरीज भी
जारी कर रही है।
सामग्री के साथ ही विभिन्न तकनीकी
युक्तियों पर भारतीय भाषाओं में समर्थन उपलब्ध करवाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
दूरसंचार विभाग द्वारा जुलाई, 2017 से स्मार्टफोन पर स्थानीय
भाषाओं का समर्थन देना अनिवार्य कर दिया गया है। स्थानीय भाषाओं के फॉन्ट और यूनिकोड स्टैंडर्ड
के इंडिक कीबोर्ड की उपलब्धता से स्थानीय भाषाओं में सामग्री निर्माण सहज और सरल
हुआ है। स्थानीय भाषाओं में सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से कई नये स्टार्टअप
भी अपना सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
गूगल इंडिया के एक शीर्ष अधिकारी के
अनुसार स्थनीय भाषाओं में अधिक से अधिक ऑनलाईन सामग्री के निर्माण से भारत की
डिजिटल अर्थव्यवस्था के 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने में बहुत मदद मिलेगी। इसके साथ
ही यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि स्थानीय भाषाओं में अधिक से अधिक सामग्री
तैयार की जाए ताकि इंटरनेट के सर्वसमावेशी रूप को बनाया जा सके। इसे केवल अंग्रेजी
जानने वालों तक ही सीमित न रहने दिया जाए।
एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2025 तक
भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था 750 बिलियन डॉलर से 1 ट्रिलियन डॉलर तक हो सकती है।
वर्तमान में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में डिजिटल अर्थव्यवस्था का योगदान
7% है और वर्ष 2025 तक इसके 17% तक हो जाने की संभावना है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ एडवांस्ड रिसर्च
इन कंप्यूटर इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के अनुसार 47% लोग ऑनलाईन माध्यमों पर
पढ़ना पसंद करते हैं। वर्ष 2015 में टाइम्स ऑफ़ इंडिया ‘साम्यम’ नाम से देशी भाषाओं में सामग्री उपलब्ध करा
रही है। द इंडियन एक्सप्रेस डिजिटल माध्यम में बंगाली, तेलुगू,
तमिल और कन्नड़ में सामग्री उपलब्ध कराने की योजना बना रहा है,
जबकि हिंदी, मराठी और मलयालम में न्यूजपोर्टल
पहले ही उपलब्ध कराए जा चुके हैं। एओएल, फर्स्टपोस्ट,
हिंदुस्तान टाइम्स, द पायनियर, द स्टेट्समैन ने हिंदी में ऑनलाईन सेवा शुरु किया है और बड़ी संख्या में पाठक यहां पर आ रहे
हैं। इंडिया टूडे यह सेवा बहुत पहले ही शुरु करके अपनी सफलता के झंडे गाड़ चुका है।
पारंपरिक रूप से बाजार क्षेत्रीय आधार
पर बंटे हुये थे, लेकिन डिजिटल दुनिया के विस्तार से बाजार
सीमाविहीन हो गए हैं। इस वजह से सोशल मीडिया, समाचार के साथ
ही सभी डिजिटल डोमेन में मातृभाषा को अत्यधिक महत्व दिया जा रहा है। सेवा
प्रदाताओं की एक बड़ी संख्या ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए उन्हें उनकी भाषा में
सहायता पहुंचाने के लिए प्रयासरत है।
हाल ही में, ऑक्सफोर्ड यूनिवरसिटी प्रेस ने तमिल और गुजराती में भी ऑनलाईन शब्दकोश
सेवा प्रारंभ की है। बहुत से ई-कॉमर्स, खुदरा और अन्य उद्योग
अपने वर्तमान पोर्टल में ही अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के भिन्न-भिन्न संस्करण निकाल
रहे हैं। जेरोधा नाम की एक ऑनलाईन स्टॉक ट्रेडिंग कंपनी ने अपना बहुभाषी ट्रेडिंग
प्लेटफॉर्म ‘काईट’ वर्ष 2015 में ही
लांच कर दिया था। इसके बाद कई अन्य कंपनियों के द्वारा भी ऐसे कदम उठाए गए। कलारी
और रतन टाटा द्वारा वित्तपोषित ‘योरस्टोरी’ स्टार्टअप और उद्यमियों के लिए समर्पित पोर्टल को 13 भाषाओं में लांच
किया। अधिकांश राज्य सरकारें बेहतर प्रशासन और जनता की अधिक से अधिक भागीदारी
सुनिश्चित करवाने के उद्देश्य से और जनउपयोगी सेवाओं को प्रयोक्ताओं की सुविधा के लिए सरकारी ऑनलाईन
पोर्टलों के प्रयोक्ता इंटरफेस को स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जा रहा है। इन
सब कारणों से क्षेत्रीय भाषाओं में डिजिटल सामग्री बढ़ रही है और अंग्रेजी का
वर्चस्व कम हो रहा है।
वर्षों तक कम साक्षरता दर, प्रौद्योगिकी का अभाव, कम आय और कम इंटरनेट, मोबाईल व कंप्यूटर की उपलब्धता से क्षेत्रीय भाषाओं में डिजिटल सामग्री
उपलब्ध नही हो पा रही थी, लेकिन अब स्थिति बदल गयी है। भले
ही भारत में, शासकीय कार्यों में अंग्रेजी की ही प्रधानता है
लेकिन मात्र 5% भारतीय ही अंग्रेजी में ठीक-ठीक ज्ञान रखते हैं। बाकी 95% भारतीयों
को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से यह सब अवसर देने
होंगे। देश में साक्षरता दर बढ़ रही है, वर्ष 1991 में 46% से
वर्ष 2011 में 69% हो गयी है। इस वजह से डिजिटल साक्षरता दर भी बढ़ रही है। गूगल की
एक रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट पर नए आने वाले प्रयोक्ताओं में से 500 मिलियन
क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोक्ता होंगे।
गूगल
द्वारा इस दिशा में बहुत सराहनीय योगदान दिया जा रहा है। गूगल वाइस सर्च हिंदी और
9 अन्य भारतीय भाषाओं में अपनी सेवा दे रहा है, इनमें वाइस टाइपिंग की
सुविधा भी है। देवनागरी के सुंदर और आकर्षक तथा प्रिंटर अनुकूल यूनिकोड समर्थित
फॉन्ट तैयार किये गये हैं। गूगल मैप्स चार भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है। यूट्युब
में अधिकांश सामग्री क्षेत्रीय भाषाओं मे उपलब्ध है। गूगल इंडिया द्वारा जुलाई और
अगस्त महीने में भारत के 16 शहरों में स्थानीय ब्लागरों को तकनीकी सहायता प्रदान
करने के उद्देश्य से तकनीकी कार्यशालाएं आयोजित कीं।
जब हम अपने देश में विभिन्न भारतीय
भाषाओं में विज्ञान, तकनीकी, उद्यमिता
आदि क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण डिजिटल सामग्री उपलब्ध करा पायेंगे, उस समय हमारे देश में वास्तविक रूप से ज्ञान और सूचना क्रांति आएगी।
ऑनलाईन मीडिया स्पेस बढ़ने से भारतीय भाषाओं में विज्ञापन राजस्व भी बढ़ा है।
फिक्की-ईआई की हाल ही में जारी रिपोर्ट से पता चला है कि वर्ष 2017 में भारतीय
भाषाओं डिजिटल मीडिया 30 प्रतिशत की दर से बढ़ा है और इसके साथ ही विज्ञापन में
28.8 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है।
भारतीय
भाषाओं में डिजिटल सामग्री तैयार करने के साथ ही बहुत आवश्यक हो जाता है कि यह
सर्च इंजन में सर्च के दौरान प्रथम पृष्ठ
पर आए ताकि अधिक से अधिक लोगों को इससे लाभान्वित किया जा सके। निम्नलिखित कुछ
तरीके हैं, जिनका वेबसाईट बनाते समय या बाद में ध्यान रखना
आवश्यक है, ताकि सर्च के दौरान मन मुताबिक परिणाम प्राप्त
किए जा सकें:-
1.
सभी लोकप्रिय सर्च
इंजन में अपनी वेबसाईट को उपलब्ध विभिन्न टूल्स की मदद से सबमिट करें, ताकि इसकी सही इंडेक्सिंग हो सके। समुचित इंडिक्सिंग के बाद ही सही परिणाम
आएगा। इसके साथ ही अपना साईटमैप भी सबमिट किया जाए। साईटमैप केवल टेक्स्ट रूप में
ही बनाया जाए, एचटीएमएल में नही।
2.
मेटा टैग में सभी
पृष्ठों और इमेज का विस्तृत विवरण अवश्य लिखा जाए, ताकि
सुसंगत खोज हो सके।
3.
गूगल सर्च कंसोल में
अपनी वेबसाईट का साईटमैप डालना न भूलें क्योंकि गूगल सर्वाधिक लोकप्रिय सर्च इंजन
है और अधिकांश सर्च के लिए गूगल पर ही निर्भर हैं।
4.
गूगल द्वारा वेबसाईट
के प्रमाणीकरण के साथ ही परफॉर्मेंस, एसेसबिलिटी,
प्रोग्रेसिव वेबएप्स की जांच के लिए गूगल लाईटहाउस की ऑनलाईन सर्विस
का अवश्य इस्तेमाल किया जाए।
5.
सर्क इंजन
ऑप्टिमाइजेशन के लिए स्ट्रक्चर्ड डाटा का इस्तेमाल बहुत आवश्यक है।
6.
वेबसाईट पर
प्रयोक्ताओं के लिए नेवीगेशन पेज बनाया जाए।
7.
अगर वेबसाईट
विभिन्न भाषाओं में है तो, बेहतर होगा कि
अलग-अलग संस्करण के लिए अलग-अलग यूआरएल का प्रयोग किया जाए।
8.
विभिन्न भाषाओं
में वेबसाईट के संस्करण के लिए ऑटोमेटिक ट्रांसलेशन का प्रयोग करना ठीक नही है।
9.
अपनी वेबसाईट को Accelerated Mobile Page (AMP) की मदद से मोबाइल अनुकूल अवश्य
बनाया जाए। इंटरनेट प्रयोक्ताओं की एक बहुत बड़ी संख्या मोबाइल की ही इस्तेमाल करती
है। यदि मोबाइल पर समय पर उचित प्रारूप में वेबसाईट लोड नही होगी तो इसका महत्व
बहुत कम हो जाएगा।
10. अपनी वेबसाईट का विभिन्न तरीकों से amptest अवश्य कर लें, ताकि मोबाइल पर इसे
लोड होने में 1 सेकेंड से अधिक समय न लगे। यदि मोबाइल पर खुलने में 5 सेकेंड से
अधिक का समय लगेगा तो प्रयोक्ता इसमें रुचि नही लेगा।
11.
अपनी वेबसाईट पर
कॉपीराईट उल्लंघन वाली सामग्री बिलकुल भी न डालें। इस तरह के विभिन्न सर्च इंजिनों
द्वारा हतोत्साहित किया जाता है। किसी भी समय यदि किसी वेबसाईट की ऐसी शिकायत
प्राप्त होती है तो उस पर कार्रवाई भी की जा सकती है।
12.
वेबसाईट बनाते समय
पब्लिशर पॉलिसी का अक्षरश: पालन किया जाना अनिवार्य है।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में
वर्ष 2015 में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में अपने वक्तव्य में कहा था कि जो टेक्नोलॉजी
के जानकार हैं, उनका कहना है कि आने वाले दिनों में डिजिटल वर्ल्ड
में तीन भाषाओं का दबदबा रहने वाला है, अंग्रेजी, चाइनीज, हिंदी। जो भी टेक्नोलॉजी से जुड़े हुए हैं, उनका सबका दायित्व बनता है कि हम भारतीय भाषाओं को भी और हिंदी भाषा को
भी टेक्नोलॉजी के लिए किस प्रकार से परिवर्तित करें। जितनी तेजी से इस क्षेत्र
में काम करने वाले विशेषज्ञ हमारी स्थानीय भाषाओं से लेकर हिंदी भाषा तक नए
सॉफटवेयर तैयार करके, नए ऐप्स तैयार करके जितनी बड़ी मात्रा
में लाएंगे, उतना अपने आप में भाषा का एक बहुत बड़ा बाजार
बनने वाली है। किसी ने सोचा नहीं होगा कि भाषा एक बहुत बड़ा बाजार भी बन सकती है।
आज बदली हुई टेक्नोलॉजी की दुनिया में भाषा अपने आप में एक बहुत बड़ा बाजार बनने
वाली है।
अत: डिजिटल दुनिया में हम क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम
से जितना अधिक योगदान करेंग़े वह हमारे देश की तरक्की और प्रगति के लिए उतना उपयोगी
साबित होगा। तभी हम समस्त देशवासियों को समान अवसर उपलब्ध करा पायेंगे। जो इंटरनेट
केवल अंग्रेजी में उपलब्ध होने के कारण मुट्ठी भर लोगों का पैरोकार बना हुआ है, वही जब भारतीय
भाषाओं में उपलब्ध होगा, तो समस्त भारतीयों के लिए बहुत
कल्याणकारी साबित होगा। केवल भाषा के आधार पर किसी को ज्ञान को वंचित कर देना किसी
भी तरह से सही नही है।
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