राजभाषा कार्यान्वयन में तकनीकी की भूमिका
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दिलीप
कुमार सिंह
भारत कोकिंग कोल लिमिटेड
आज तकनीकी के दौर में विविध क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी के
प्रयोग से मानव जीवन बहुत आसान हो गया है। जिन कार्यों को करने के लिए हमारी पिछली
पीढ़ी को बहुत संघर्ष करने पड़ते थे, आज हम वही कार्य चंद सेकेंडों में चुटकी बजते ही कर
लेते हैं। जिस तरह से प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों से हम सभी क्षेत्रों में
लाभान्वित हो रहे हैं, उसी प्रकार भाषा के क्षेत्र में भी नित नवीन प्रौद्योगिकियाँ भी
हमारे सामने आ रही हैं। इनकी मदद से कोई भी अपनी भाषा में तकनीकी माध्यमों के
प्रयोग से...
तेजी से और सरलता से विभिन्न संचार माध्यमों पर कार्य कर सकता है। आज से
दस वर्ष पहले लोगों को तकनीकी माध्यमों में अपनी भाषा में कार्य करने के लिए जिस
बेचारगी का सामना करना पड़ता था, अब वह नहीं रही। समय के साथ राजभाषा हिंदी भी तकनीकी रूप से
पर्याप्त सक्षम भाषा बनती जा रही है। आज कंप्यूटर पर हिंदी के बढ़ते प्रयोग से
देश में सरकारी कार्यालयों में राजभाषा
नीति के कार्यान्वयन में बड़ी मदद मिली है। आज लोग आसानी से बहुत कम प्रयासों में
कंप्यूटर पर हिंदी का प्रयोग करने में सक्षम बन रहे हैं। आज कंप्यूटर पर हिंदी में
काम न करने का कोई बहाना नहीं बचा है। कार्यालयों में हिंदी में काम करने के लिए
तकनीकी स्तर पर कोई समस्या नहीं बची है। कार्यालयों में राजभाषा नीति के अनुपालन
में वर्ष 2016-17 के वार्षिक कार्यक्रम के अनुसार ‘क’ क्षेत्र में सम्पूर्ण कार्य हिंदी में, ‘ख’ क्षेत्र में 90 प्रतिशत
कार्य और ‘ग’ क्षेत्र में 65 प्रतिशत कार्य हिंदी में किए जाने का लक्ष्य
निर्धारित है। इसके साथ ही सम्पूर्ण देश में हिंदी में प्राप्त पत्रों का जवाब
हिंदी में ही दिए जाने की अनिवार्यता है और हिंदी में प्रवीणता प्राप्त कर्मियों
को भी अपना सम्पूर्ण कार्य हिंदी में किए जाने की बाध्यता है। आज तकनीकी के प्रयोग
से राजभाषा कार्यान्वयन की स्थिति में लगातार सुधार आता जा रहा है। आज पहले के
मुक़ाबले सभी कार्यालयों में राजभाषा के क्षेत्र में तकनीकी का प्रयोग बढ़ता जा रहा
है। इस बढ़ते प्रयोग के प्रभाव भी आज विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिल रहे हैं।
हिंदी टाइपिंग में तकनीकी का प्रभाव
किसी
भी कार्यालय में टाइपिंग का कार्य सबसे अधिक होता है और राजभाषा नीति के समुचित
कार्यान्वयन के लिए सभी को हिंदी टाइपिंग का ज्ञान होना आवश्यक है। हिंदी टाइपिंग
में यूनिकोड तकनीकी के आ जाने के बाद हमारे देश में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं
में टाइपिंग के मामले में क्रांति सी आ गई है। पहले टाईप करने का कार्य केवल
टाइपिस्ट का होता था, आज क्लर्क से लेकर महाप्रबंधक/निदेशक/महानिदेशक स्तर तक के
अधिकारी भी यूनिकोड माध्यम से सहजता से टाइपिंग कर पा रहे हैं। परंपरागत प्रकार के
फांट जिसपर टाइपिंग सीखने के बाद अभ्यास करना पडता था और स्पीड आने में महीनों
लगते थे, अब फोनेटिक की बोर्ड की मदद से वही कार्य कुछ महीनों की जगह कुछ
घंटों में हो जाता है। तकनीकी की मदद से आसानी से टाइपिंग सीखने की वजह से सभी
स्तर के हिंदी में दक्ष कर्मचारी/अधिकारी हिंदी में लिखने में रूचि रखने लगे हैं।
परंपरागत प्रकार के फांट में जो समस्याएं थीं, वह सब की सब यूनिकोड की मदद से दूर कर ली गई है।
इसमें एक बार हिंदी में टाईप की गई सामग्री का सभी माध्यमों में प्रयोग किया जा सकता
है। इस प्रकार यूनिकोड तकनीकी को अपनाने की वजह से बड़ी संख्या में लोगों को
कंप्यूटर पर हिंदी में काम करने के लिए प्रवृत किया जा सका है। अब स्थिति यह है कि
15 वर्ष
पहले तक जो लोग कंप्यूटर सीखने और हिंदी में काम करने से बचते थे वही आगे बढ़कर
स्वतः कंप्यूटर भी सीख रहे हैं और हिंदी में काम करना भी। आज के समय में तकनीकी
इतनी विकसित हो चुकी है कि यदि लोगों को मात्र कंप्यूटर पर हिंदी में काम करने के
संबंध में जागरूक भर कर दिया जाए तो वे शेष कार्य खुद से कर लेंगे। इससे सरकारी
कार्यालयों में कंप्यूटर पर हिंदी में काम करने संबंधी अभियान को बहुत गति मिली
है। इस अभियान में दुनिया भर की दिग्गज साफ्टवेयर कंपनियों का सहयोग भी मिल रहा
है। वर्ष 2000 के बाद आने लगभग सभी ऑपरेटिंग सिस्टम यूनिकोड सपोर्ट दे रहे हैं।
साथ ही बहुत से साफ्टवेयर भी अपनी लोकलाइजेशन नीति के अंतर्गत यूनिकोड में काम
करने की सुविधा दे रहे हैं। आज देश में राजभाषा हिंदी में कार्यान्वयन इतना तेजी
से बढ़ाने में हिंदी यूनिकोड की अहम योगदान है। देश भर में सभी स्तर के
अधिकारी/कर्मचारी अपने कार्य के लिए किसी टाइपिस्ट पर आश्रित न रहकर खुद से अपना
कार्य कर पा रहे है। यूनिकोड ने कंप्यूटर पर हिंदी को अंग्रेजी के समान ही सशक्त
बना दिया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली में कार्य करते हुए मेरे द्वारा
किए गए एक अध्ययन के दौरान यह पता चला कि शुरुआत में वर्ष 2008 तक जब वहाँ के सभी
विभागों में ट्रू टाइप फॉन्ट (कृतिदेव, अक्षर) का प्रयोग होता था, तो लोग हिंदी टाइपिंग
सीखने से दूर भागते थे, लेकिन वहाँ पर विशेष प्रयासों से जब यूनिकोड के बारे में लोगों
को जानकारी दी गई और उनके कंप्यूटर पर इसे सक्रिय कर दिया गया तो, वे इसके प्रयोग से बड़ी
आसानी से कंप्यूटर पर हिंदी का प्रयोग करने लगे। वर्ष 2008 के पहले वहाँ पर औसत
हिंदी पत्राचार का प्रतिशत 20-25 प्रतिशत रहता था, एक वर्ष के अंदर बढ़कर 35-40 प्रतिशत पहुँच गया।
भारत कोकिंग कोल लिमिटेड में भी यूनिकोड के प्रयोग से वर्तमान में करीब 90 प्रतिशत
तक हिंदी पत्राचार हो रहा है। इसे निम्नलिखित तालिका के माध्यम से भी देखा जा सकता
है-
क्रम संख्या
|
कार्यालय
|
यूनिकोड के प्रयोग से
पहले की हिंदी पत्राचार की स्थिति
|
यूनिकोड के प्रयोग के
बाद की हिंदी पत्राचार की स्थिति
|
1.
|
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली
|
20-25 प्रतिशत
|
35-40 प्रतिशत
|
2.
|
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण मुंबई
|
50-55 प्रतिशत
|
70-75 प्रतिशत
|
3.
|
भारत कोकिंग कोल लिमिटेड धनबाद
|
55-60 प्रतिशत
|
85-90 प्रतिशत
|
4.
|
कर्मचारी राज्य बीमा निगम कानपुर
|
60-65 प्रतिशत
|
95-98 प्रतिशत
|
5.
|
कोयला खान भविष्य निधि संगठन,
धनबाद
|
50-55 प्रतिशत
|
85-90 प्रतिशत
|
6.
|
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल,
बीसीसीएल इकाई धनबाद
|
90-91 प्रतिशत
|
98-99 प्रतिशत
|
7.
|
खान सुरक्षा महानिदेशालय,
धनबाद
|
55-60 प्रतिशत
|
80-85 प्रतिशत
|
(राजभाषा अधिकारियों द्वारा दिए गए आंकड़ों पर आधारित)
कार्यालय में अनुवाद पर तकनीकी का प्रभाव
अपने
देश में अधिकांश कार्य आज भी अंग्रेजों द्वारा बनाई गई व्यवस्थाओं के आधार पर चलता
है। अंग्रेजों ने अपने शासन की सुविधा के लिए सभी कार्यों के लिए प्रक्रियाओं का
निर्माण अंग्रेजी में ही किया था। हम आज भी इन प्रक्रियाओं का अनुपालन करते हैं।
इन प्रक्रियाओं का अनुपालन आज भी कार्यालयों में राजभाषा नीति के शत प्रतिशत
अनुपालन में बहुत बाधक बना हुआ है। इन प्रक्रियाओं को जब तक हिंदी में नहीं कर
लिया जाएगा तब तक पूरी तरह से राजभाषा नीति के अनुपालन में समस्याएँ आती रहेंगी।
इस कार्य में हिंदी अनुवाद की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। केंद्र सरकार के
कार्यालयों में लागू राजभाषा नीति के अनुसार हमारे देश के एक बड़े हिस्से में
शत-प्रतिशत कार्यालयीन कार्य हिंदी से ही करना अनिवार्य किया गया है। इसके अलावा
कुछ प्रकार के दस्तावेजों को पूरे देश को द्विभाषी रूप में जारी करना अनिवार्य
होता है। इन सब कार्यों को पूरी तरह से करने में बड़ी संख्या में कुशल और
प्रशिक्षित अनुवादकों की आवश्यकता है। राजभाषा विभाग द्वारा बनाए गए नियमों के
मुताबिक केंद्र सरकार के प्रत्येक कार्यालय में प्रत्येक 125 कार्मिकों पर एक हिंदी अनुवादक
की भर्ती का नियम बनाया गया है। अव्वल तो यह लक्ष्य किसी कार्यालय में पूरा नही
किया जाता है। दूसरा अगर पूरा कर भी लिया जाए तो 125 कार्मिको द्वारा किया गया
अंग्रेजी का कार्य एक हिंदी अनुवादक नही कर सकता है। अतः राजभाषा नीति में इस बात
पर बल दिया गया कि मूल रूप से सारा कार्य हिंदी में ही किया जाए। अनुवादकों पर
अधिक आश्रित न रहा जाय। इस वजह से अंग्रेजी में काम करने के अभ्यस्त
अधिकारियों/कर्मचारियों को मशीन अनुवाद का विकल्प के तौर पर सहारा लेना पड़ता है।
एक अनुमान के मुताबिक देश भर के अधिकांश कार्यालयों में तुरंत हिंदी करने के लिए
गूगल ट्रांसलेशन सर्विस सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके बाद दूसरा स्थान सीडैक द्वारा
विकसित ‘मंत्रा‘ मशीन अनुवाद प्रणाली का है। लोक सभा व राज्य सभा में सत्र के
दौरान संदन की कार्यवाही को हिंदी मे करने के लिए कार्य की अधिकता की वजह से मशीन
अनुवाद की सहायता लेना अनिवार्य हो जाता है। निश्चय ही मशीन अनुवाद की मदद से
कार्यालयों में राजभाषा हिंदी में काम-काज बहुत तेजी से बढ़ा है। मशीन अनुवाद की
सेवा का उपयोग शब्दकोश के विकल्प के तौर पर भी किया जा रहा है। तकनीकी की प्रयोग
कर बड़े-बड़े दस्तावेजों की अनुवाद बहुत अल्प समय में किया जा रहा है। मशीन अनुवाद
की मदद से राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3 (3) जैसे नियमों के अनुपालन में बड़ी मदद मिल रही है। इस
अधिनियम के अंतर्गत कार्यालय में प्रयुक्त होने वाले 14 प्रकार के दस्तावेजों को
अनिवार्य तौर पर द्विभाषी जारी करना होता है। इसमें मशीन अनुवाद की भूमिका बहुत
महत्वपूर्ण है।
हिंदी प्रशिक्षण में तकनीकी का प्रभाव
केंद्रीय
सरकार के कार्यालयों में पूरे देश भर के कार्मिक कार्य करते हैं। इनमें एक बड़ी
संख्या दक्षिण भारतीय, बंगाली, उड़िया और पूर्वोत्तर भारत के कर्मियों की होती है। इन राज्यों
के कर्मियों की मातृभाषा आमतौर पर हिंदी नहीं होती है। इनमें से अधिकांश ने एक
विषय के रूप में मैट्रिक स्तर तक हिंदी पढ़ी होती है और कुछ ऐसे भी होते हैं, जिन्होने हिंदी कभी नहीं
पढ़ी होती है। ऐसे कर्मियों को जब तक हिंदी में कार्य करने का प्रशिक्षण नहीं
प्रदान किया जाएगा, तब तक कार्यालय में राजभाषा नीति के कार्यान्वयन में पूरी तरह
से सफलता नहीं मिलेगी। संविधान की धारा 344 के अनुसार वर्ष 1955 में गठित किए गए राजभाषा आयोग की सिफारिशों पर जारी
राष्ट्रपति महोदय के आदेश, 1960 में स्पष्ट किया गया है कि केंद्रीय सरकार के
प्रत्येक कार्यालय में कार्यरत अधिकारी/कर्मचारी जिनको हिंदी में काम करने का
ज्ञान नहीं है, को सेवाकालिक प्रशिक्षण लेना अनिवार्य कर दिया गया है। इस
प्रशिक्षण मे पास होने पर एक वेतनवृद्धि के बराबर राशि मिलती है और अच्छे अंकों से
पास होने पर कुछ नकद पुरस्कार भी मिलता है। प्रशिक्षण की व्यवस्था बड़े शहरों में
ही होने की वजह से छोटे शहरों के कार्यालयों में कार्यरत अधिकारियो/कर्मचारियों
प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नही हो पायी थी। हालांकि इस समस्या को दूर करने के लिए
पत्राचार पाठ्यक्रम की व्यवस्था की गई है, परंतु किसी प्रशिक्षक के अभाव में यह योजना कारगर
सिद्ध नही हुई है। हिंदी प्रशिक्षण के लिए भारत सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा एक ऑनलाईन
पोर्टल विकसित किया गया है। प्रमुख भारतीय भाषाओं के माध्यम से हिंदी सीखाने के
लिए एक प्लेटफार्म है। इसमें हिंदी के अक्षर ज्ञान/उच्चारण से लगकर पत्र लेखन तक
का संपूर्ण अभ्यास कराया जाता है। इसमें एक सबसे बड़ी सुविधा यह है कि भारत की 14
भाषाओं- असमी, बोडो, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, तमिल और तेलुगू की मदद से हिंदी सीखी जा सकती है। इस पैकेज का
नाम लीला (LILA-Learning Indian Language
through Artificial Intelligence) है। इसकी
मदद से बहुत से लोगों ने आसानी से हिंदी सीखा है। जैसे-जैसे देश में हिंदी में
प्रशिक्षित अधिकारी/कर्मचारी बढ़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे राजभाषा में कार्य भी बढ़ता जा रहा है। आज
पहले के मुकाबले सभी कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन की स्थिति मजबूत हुई है, तो इसका एक कारण यह भी है
कि आज हिंदी में प्रशिक्षित अधिकारी व कर्मचारी बढ़ रहे हैं। विभिन्न तकनीकी
माध्यमों से उपलब्ध प्रशिक्षण सामग्री की वजह से राजभाषा कार्यान्वयन को बढ़ाने में
सहायता मिली है। भारत में केन्द्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान द्वारा केंद्रीय
सरकार के कर्मियों को हिंदी भाषा प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। प्रशिक्षण
सफलतापूर्वक पूरा कर लेने के बाद संबंधित कर्मी को हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान
प्राप्त समझा जाता है। केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान द्वारा 31 दिसंबर, 2015 तक विभिन्न
कार्यक्रमों में प्रशिक्षण प्राप्त कर्मियों की संख्या निम्नलिखित है:-
क्रम संख्या
|
पाठ्यक्रम का नाम
|
प्रशिक्षित कर्मियों की
संख्या
|
1.
|
हिंदी भाषा
|
15,82,583
|
2.
|
हिंदी शब्द संसाधन/टंकण
|
1,68,624
|
3.
|
हिंदी आशुलिपि
|
30,571
|
4.
|
हिंदी कार्यशालाएं
|
26,578
|
5.
|
अल्पकालिक प्रशिक्षण
|
4,980
|
|
कुल
|
18,13,406
|
(इसमें आनलाइन और आफ़लाइन दोनों ही प्रशिक्षण के
आंकड़े सम्मिलित हैं।)
हिंदी आशुलिपि में तकनीकी का प्रभाव
किसी
भी कार्यालय में शीर्ष अधिकारियों के लिए आशुलिपि का महत्व बहुत अधिक है। आज
कार्यालयों में कम होती श्रमशक्ति और कार्य के बढ़ते दबाव के चलते सभी शीर्ष
अधिकारियों को आशुलिपिक की सेवाएँ नहीं मिल पाती हैं। प्रत्येक कार्यालय में एक
निश्चित अनुपात में हिंदी आशुलिपिकों की भर्ती अनिवार्य की गई। फिर भी, प्रत्येक स्तर के अधिकारी
को हिंदी आशुलिपिक की सेवाएं सुलभ नहीं हो पाती है। कुछ समय पहले तक कार्यालयों
में आशुलिपिक अधिकारी का डिक्टेशन लेकर उसे हिंदी या अंग्रेजी में हाथ से लिखते थे
या सीधे कंप्यूटर/टाईप मशीन पर बैठ कर पत्र का मसौदा तैयार कर प्रस्तुत करते थे।
यह एक श्रमसाध्य और समय साध्य प्रक्रिया थी। ऐसे में इनके कार्य को आज तकनीकी के
माध्यम से बहुत आसान कर लिया गया है। भाषाई क्षेत्र में तकनीकी की बढ़ती दखलंदाज़ी ने
इस क्षेत्र को बहुत विकसित किया है। परंतु आज के दौर में तकनीकी के बढ़ते प्रभाव ने
प्रायः आशुलिपिकों का कार्य समाप्त करने की प्रक्रिया की शुरूआत कर दी है। भाषा
प्रौद्योगिकी की मदद के वाक से पाठ सॉफ्टवेयर और पाठ से वाक सॉफ्टवेयर विकसित किए
जा चुके हैं। वाक से पाठ साफ्टवेयर में वर्तमान में गूगल वाइस टाइपिंग बहुत अच्छी
तरह से कार्य कर रहा है। इसमें हाल ही में हिन्दी में काम करने की सुविधा प्रदान
कर दी गई है। इसके लिए किसी को किसी प्रकार के पूर्व प्रशिक्षण की आवश्यकता भी
नहीं है। अब आशुलिपिकों के बजाय कंप्यूटर पर सीधे डिक्टेशन दिया जा सकता है और यह
प्रक्रिया अपेक्षाकृत कम श्रमसाध्य और कम समय साध्य है। इस सॉफ्टवेयर की मदद से
हिंदी टाईपिंग न जानने वाले अधिकारी/कर्मचारी भी कंप्यूटर पर हिंदी में लिखने की
क्षमता से युक्त बन रहे हैं। इसके साथ ही हिंदी के पाठ से वाक सॉफ्टवेयर द्वारा
किसी अन्य कार्य व्यस्त रहने पर भी हिंदी पत्रों का मजमून सुनकर समझा जा सकता है।
आज के समय में वाक से पाठ सॉफ्टवेयर प्रयोग कर कार्यालय में अधिकारी व कर्मचारी
बिना किसी पर आश्रित रहे कार्यालय आदेश/परिपत्र/पत्र/निविदा पत्र आदि तैयार करने
में सक्षम हो पा रहे हैं। इसे हिंदी पत्रों को तैयार करने में बड़ी सहुलियत हो रही
है और कार्यालयों मे राजभाषा हिंदी में पत्राचार भी बढ़ रहा है।
हिंदी शब्दकोश का इलेक्ट्रोनिक संस्करण और इसका प्रभाव
अगर
किसी भाषा में कुछ काम करना है, और हमारी पकड़ उस भाषा में ठीक नहीं है, तो उस स्थिति में शब्दकोश
में भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। जब अंग्रेजी में काम करने में प्रशिक्षित
व्यक्ति हिंदी में काम करना शुरू करता है, उसे हिंदी में शब्दों की सटीक अभिव्यक्तियां नहीं
मिल पाती हैं, और इस काम को आसान करता है शब्दकोश। पुस्तकाकार शब्दकोश को
बार-बार देखना असुविधाजनक होता है। ई-बुक के रूप में उपलब्ध शब्दकोश का अवलोकन
काफी आसानी से किया जाता है और इसका डिजाइन प्रयोक्ता की आवश्यकतानुसार भी किया जा
सकता है। ई-शब्दकोश के प्रयोग से हिंदी अनुवाद में तो आसानी हुई ही है साथ ही
अंग्रेजी में काम करने के अभ्यस्त लोगों को भी हिंदी में लिखने में आसानी होती है।
ई शब्दकोश के स्मार्टफोन और कंप्यूटर में इस्तेमाल से लोगों में हिंदी में लिखने
संबंधी जागरूकता बढ़ी है। इसी बढ़ी हुई जागरूकता का सीधा असर कार्यालयों में हिंदी
कामकाज पर भी पड़ा है।
आज
कार्यालयों में राजभाषा हिंदी में अगर कार्य बढ़ता जा रहा है, हिंदी कार्यान्वयन की
स्थिति मजबूत हो रही है, हिंदी क्रियान्वयन की रफ्तार बढ़ रही है, तो उसमें तकनीकी का बहुत
बड़ा योगदान है। तकनीकी की मदद से आज हिंदी में काम करना बहुत आसान हो गया है। आज
केंद्रीय सरकार के लगभग सभी कार्यालयों में प्रस्तुत होने वाले मैनुअल कार्य, संदर्भ व प्रक्रिया साहित्य
हिंदी में उपलब्ध हो गए हैं। काफी कुछ पत्राचार हिंदी में हो रहे हैं। सभी
कार्यालयों की वेबसाइटें हिंदी में उपलब्ध हो गई है। लोगों में हिंदी में काम करने
की ललक अवश्य बढ़ी है। यद्यपि तकनीकी की मदद से काफी कुछ काम हिंदी में किया जाना संभव
हो पाया है। तथापि तकनीकी की सभी संभावनाओं का प्रयोग हिंदी भाषा के लिए करने की
स्थिति में हम अभी नही आ सके हैं। तमाम सॉफ्टवेयरों की लोकलाइजेशन नहीं हुआ है। अभी भी बहुत से सॉफ्टवेयरों का लोकलाइजेशन अभी
करना बाकी है। तमाम सॉफ्टवेयर अंग्रेजी व कुछ अन्य भाषाओं के लिए तो बहुत अच्छा
कार्य करते हैं, परंतु हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में उतनी दक्षता से कार्य नहीं
कर पाते हैं। देश भर में प्रायः सभी कार्यालयों में अपने आंतरिक काम-काज के लिए इंट्रानेट
व अन्य प्रचालन सॉफ्टवेयर बनवाए जाते हें, परंतु दुःखद यह है कि इनमें से अधिकांश अंग्रेजी को ही
समर्थित करते है, जिससे न चाहते हुए भी तमाम लोगों को अंग्रेजी में काम करना पड़ता
है। इससे कार्यालयों में कुछ काम मजबूरी के चलते भी अंग्रेजी में करने पड़ रहे हैं।
फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं है कि राजभाषा हिंदी आज कार्यालयों में जिस स्थिति
में खड़ी है, उसमें तकनीकी का बहुत बड़ा योगदान है।
जिस
कंप्यूटर टेक्नोलॉजी ने आरंभ में राजभाषा के विकास और प्रचार व प्रसार में खलनायक
की भूमिका निभाई थी, वही आज इसकी सबसे बड़ी पैरोकार बनकर उभरी है। भाषा की प्रगति
तकनीकी रूप से न होती तो भारत सरकार की राजभाषा प्रचार-प्रसार अभियान इतनी गति से
नहीं पकड़ सकता था। यद्यपि जितनी प्रगति आज हुई है,
वह अभी भी अपर्याप्त है। मुकम्मल
प्रगति के लिए भारत सरकार को अपने शोध संस्थानों में भाषा- प्रौद्योगिकी को भारतीय
भाषायें के लिए विकसित करने हेतु अनुसंधान पर जोर देना चाहिए। देश में कंप्यूटर
साक्षरता की दर और बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि इजाद की तकनीकियों का मुकम्मल प्रयोग किया जा
सके। वर्तमान सरकार जिस ‘डिजीटल इंडिया ‘ की संकल्पना लेकर चल रही है, उसे भाषा प्रौद्योगिकी को भारतीय भाषाओं के लिए
विकसित किए बिना कारगर ढंग से लागू नहीं किया जा सकता है । भाषा प्रौद्योगिकी के
विकसित स्वरूप पर ही राजभाषा कार्यान्वयन को प्रभावी ढंग से करने में सफलता
प्राप्त की जा सकती है। कार्यालयों में सम्पूर्ण कार्य हिंदी में करने के लिए आज
जिस चीज की सर्वाधिक आवश्यकता है, वह है इच्छाशक्ति। तकनीकी रूप से सारे साधन उपलब्ध होने के बाद
भी यदि हम शतप्रतिशत कार्य हिंदी में नहीं कर पा रहे हैं, तो इसमें पूरी तरह से
हमारी इच्छाशक्ति ही दोषी है।
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